"भिटौली" हर विवाहिता स्त्री को रहता है इसका बेसब्री से इंतजार
कर्णप्रयाग : उत्तराखंड में मनाये जाने वाले अधिकतर त्यौहार व लोक संस्कृति प्रकृति से जुड़े हुए है किंतु चैत्र माह में आने वाली भिटौली जिसका यहां की लोक संस्कृति में बहुत ही महत्व है। ये विवाहिता स्त्रियों में उत्साह व प्रेम के रंग भरने का काम करती है और यही कारण है विवाह पश्चात भी स्त्रियों का अपने मायके से एक भावनात्मक रिश्ता बना रहता है।
भिटौली एक परंपरा के साथ साथ एक पर्व भी है। यह चैत्र माह के पहले दिन फूलदेही त्यौहार से आरंभ हो जाती है और पूरे महीने चलती है। इसे गढ़वाल और कुमाऊं दोनों मंडलों में मनाया जाता है। चैत्र माह में विवाहिता स्त्रियों को इसका बेसब्री से इंतजार रहता है क्योंकि इस माह उसके मायके से उसके माता-पिता या भाई भिटौली यानी (पकवान, मिठाई, कपड़े, आभूषण इत्यादि) की सौगात लेकर आने वाले होते है।उत्तराखंड में पहले आने जाने के साधन नहीं होते थे और और लोग अधिकतर खेती बाड़ी के काम में व्यस्त रहते थे ऐसे में वे अपनी विवाहित बेटी के हाल चाल समय पर नहीं ले पाते थे। चैत के महीने में काम कुछ कम होता है ऐसे में बेटी के ससुराल जाकर उसकी राजी ख़ुशी जानने का सही समय होता था।
दिल्ली में रह रहे कुमाऊं के उमेश सती ने बताया कि एक लड़की का विवाह चाहे कितने संम्पन्न घर में हुआ हो लेकिन विवाह के पश्चात अपने मायके से आने वाली भिटौली (भेंट) से उसमें एक नई ऊर्जा प्राप्त होती है व उसका गौरव बना रहता है। कहते हैं कि भिटौली बहन को भाई देने जाता है इससे भाई बहन के संबंध प्रगाढ़ होते हैं लेकिन अगर भाई किसी परिस्थितिवश नहीं जा पात्ता तो माता पिता इस रीत को निभाते हैं। यह बहन बेटी को मायके से दीर्घायु, संपन्नता व खुशहाली के रूप में दिया गया आशीर्वाद और प्यार होता है ।
भिटौली के पीछे प्रचलित कथा
एक बार एक स्त्री अपने ससुराल में चैत्र माह में मायके से भाई द्वारा भिटौली की सौगात का इन्तजार कर रही होती है लेकिन इन्तजार करते करते उसे गहरी नींद आ गई। जब उसका भाई भिटौली लेकर उसके घर पहुंचा तो घर पर कोई नहीं था और बहन गहरी नींद में थी ऐसे में उसने सोचा कि मेरी बहन खेत और घर के कामों से थककर सो गई है उसे उठाकर उसके आराम में खलल नहीं डालनी चाहिए और ये सोचकर वो भिटौली बहन के पास रखकर लौट आया। जब बहन की नींद खुली तो उसने अपने पास भाई द्वारा लाई भिटौली को देखा तो उसे बड़ा दुःख हुआ कि उसका भाई आया था और वह सोती रह गई जिसकी वजह से उसका भाई बिना खाये पिए ही चला गया। ग्लानि वश उसने यह कहकर प्राण त्याग दिए कि भाई भूखा रहा और मैं सोती रह गई। कहा जाता है कि मृत्यु उपरांत वह बहन घुघुती पक्षी बनी और हर वर्ष चैत महीने में "भै भुको, मि सिती" बोलती रहती है।
कहा जाता है कि घुघुती को देखकर स्त्रियों को मायके की याद आने लगती है और शायद यही कारण है इस पर गढ़ नरेश नरेंद्र सिंह नेगी ने एक लोक गीत घुघुती घुराण लगी मेरा मैत की, बौडी बौडी ऐगी ऋतु चैत की रचा था ।
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