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दादू-रचनाकार के दिल में छपी पहाड़ की तस्वीर को उजागर करती कवि भगवती जुयाल गढ़देशी की रचना

अपने दिल में छपी पहाड़ की तस्वीर को अपनी रचना के माध्यम से उजागर कर रहे हैं प्रकृति, पहाड़ व गढ़ प्रेमी उत्तराखंड के वरिष्ठ रचनाकर भगवती जुयाल गढ़देशी। 


दादू

दादु  छौंवू  मित  पर्वतु   कू  वासी

घ्वीड़ चांठा कांठौं कु छयो  रैवासी

ऊंचा  हिंवाला  घणा बुग्यालु  वासी

देवतों की  थाती कू  छयो आशीषी।

बौगदिन  जख   धौली  गंगा   जमुना

पाप धोणू जख कखा  ढौली  औंदान

धामू  मा धाम  जख  छिन  चार  धाम

प्रयागु  उदगम वखि  बद्री केदार धाम।


देव थाती बेद व्यास लिखि गैनी पाती

देवता  समान  जख  सभि  मेरा  मैती

नमन वीं थात्यू जलमी जैन पाल्यूं सैंती

देवतौं की चरण रज माथ लगौंदु मैती।

मठु मा मठ जख रमदा त्रिजुगी नारैण

नीलकंण  की  गाथा लांदा बेद  पुराण

तीलू  रौतेली  पतिव्रता  रामी   बौराण 

बीर चंद्रसिंह गढवाली माधो सिंह भंडारी।


पंडौं  का  पंवड़ा   ढोल्यूं   कू   मंडाण

झांगर जवर थौल जख सीता कू  सैण

माँ सीता धरति माँ गोद लेणै समलौंण

रिटणा आंखौं स्वीणा क्या क्या लाण।

नागरजा नरसिंह भैरौं गोलज्यू जन देव

रक्षा  कदिन  छोप  छाया  धरी  भू देव

नंदा कु थान  धौली दिबरगौ  कू  स्नान

कमलेश्वर  महादेव देंदु निपुतौं सनतान

धन धन हे ईष्ट जु ले गढ भूमी   जलम

बटोल्यां  रै होला मेरा पुण्य कैरी करम

देव भूमि  आषीश  छौं  मि तेरू   गाणू

जलमु दुबारा गोदी मा हो जीणु मोरणू।

छोया छंछेड़ौं  सी बौंखले  पापी पराण

ना  समझी  कै  रयूं तबरी  मी  अजाण

स्वर्ग जसि घौरबार अजणदि मा तिराई

भैर खुटु धरदि दां भलु बुरू नी चिताई।

औणी खौरी कैन कन ज्वाप  यु काई

किलै पित्रकूड़ा छोड़ी मि लम्पट ह्वाई

आज वा पित्र  कुड़ी खंद्वार  च  होणी

फंस्यूं  छौं  माया  मा छुद्या  नी पुरेणी। 

दैब मनखी चोला पैरे भलू काम कौरी

माया जाल फंसै किलै  कै गें मेरी तेरी

लोभ लालच छुद्धया नि ह्वे साकी पूरी

गढदेशी टपरौंद  रै देखी  तेरी हेराफेरी।





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