नागनाथ पोखरी-जहां मिलता है प्रकृति का खूबसूरत नज़ारा
शहरों की भागमभाग, शोर शराबे और प्रदूषण से निजात पाने के लिए यदि आप प्रकृति के निकट कुछ समय बिताना चाहते हैं तो आप चमोली जनपद के नागनाथ पोखरी जा सकते है। ये स्थान प्राकृतिक सौंदर्य लिए धार्मिक महत्त्व से भी अति उत्तम है। बांज व बुरांश के जंगलों के बीच घिरा यह स्थान गढ़वाल के 52 गढ़ों में एक रहा है। इसकी प्राकृतिक छटा को देखकर ही अंग्रेजों ने भी इसे पर्यटक स्थल के रूप में विकसित करने का मन बनाया था।
सम्पूर्ण उत्तराखंड को हम देवस्थली के रूप में जानते हैं और नागपुर गढ़ के पोखरी नामक स्थान को नागस्थल के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि नागराजा यहां स्वयं विराजमान है और इस क्षेत्र के लोग उन्हें अपना आराध्य मानते हैं। पोखरी में ही नागपुर क्षेत्र का सबसे बड़ा बाजार हुआ करता था और यहीं से ही विभिन्न स्थानों के लिए बसें मिला करती थी। एक ज़माने में इस बाजार का अपना अलग ही महत्व हुआ करता था। रोजमर्रा की सभी बस्तुओं के अलावा यहाँ समय समय पर मेलों का आयोजन हुआ करता था जिसमें अपार भीड़ देखने को मिलती थी हालांकि अब भी यहाँ किसान मेला हर वर्ष लगता है। समय के साथ जैसे जैसे क्षेत्र का विकास हुआ और बसों का स्थान जीपो ने लिया तबसे इस बाजार की रौनक ख़त्म सी हो गई है और इसका स्थान विनायक धार ने ले ली है। बिनायक धार से आप सुदूर अलौकिक हिम शिखरों के दर्शन कर प्रकृति को आत्मसात कर सकते हैं।
विनायक धार से एक रोड मोहनखाल होते हुए रुद्रप्रयाग के लिए जाता है तो एक कर्ण की नगरी कर्णप्रयाग के लिए वहीं एक रोड गोपेश्वर के लिए निकलता है। अगर आप ट्रैकिंग के शौक़ीन हैं तो पोखरी से गोपेश्वर मार्ग पर करीब 10 -12 किलोमीटर दूर स्थित हापला से आप तुंगनाथ मंदिर के लिए पैदल जा सकते है। कई किलोमीटर की इस यात्रा में आपको प्रकृति का आनंद तो प्राप्त होगा ही साथ ही कुछ नए अनुभव भी मिलेंगे। भगवान कार्तिक स्वामी भी इस स्थान से कुछ ही किलोमीटर की दूरी पर स्थित है। पोखरी में भारतीय स्टेट बैंक केअलावा जिला सहकारी बैंक, तहसील, पॉलिटेक्निक कॉलेज और लोकनिर्माण विभाग का सुंदर गेस्ट हाउस भी है।
ऐतिहासिक नागनाथ इंटरकॉलेज
पोखरी से लगभग 2-3 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है नागनाथ इंटरकॉलेज। स्थानीय निवासी श्रीधर प्रसाद सती के अनुसार सन 1901 में यहां गढ़वाल के पहले एंग्लो इंडियन वर्नाकुलर मिडिल स्कूल की स्थापना की गई थी इसके बाद 1963 में इसे हाई स्कूल और फिर 1971 में ये स्कूल इंटरमीडिएट कॉलेज में तब्दील हुआ और आखिरकार कॉलेज में उच्चीकृत हुआ।19वीं सदी में जनपद रुद्रप्रयाग और चमोली में शिक्षा का एक मात्र स्थान यही था।
गढ़वाल के चितेरे कवी चंद्रकुंवर बर्तवाल की शिक्षा भी इसी स्कूल से हुई। पोखरी से नागनाथ जाने के रास्ते में देवस्थान नामक गांव आता है जो बहुत ही रमणीय है और लोग भी व्यवहार कुशल है। इस गांव से नागनाथ तक के मार्ग में आपको बांज बुरांश के अलावां अन्य अनेकों खूबसूरत प्राकृतिक संसाधन आकर्षित करेंगे साथ ही आपको अलौकिक शांति का आभास भी होगा। कॉलेज प्रांगण के आसपास का एरिया बहुत ही लुभावना व शुकुन देने वाला है। इसकी ख़ूबसूरती का वर्णन आपको कवी चंद्रकुंवर बर्तवाल की कविताओं में भी देखने को मिल जायेगा।
अब इस कॉलेज के नए भवन का निर्माण हो चुका है और पुराने भवन को हॉस्टल के रूप में इस्तेमाल किया जा रहा है जो जीर्ण क्षीण हो चुका है। इसके पुनर्निर्माण की एवं इसे हैरिटेज स्थल बनाने की आवाज जोर शोर से उठ रही है। आखिर उठे भी क्यों नहीं ये हमारी एक ऐतिहासिक धरोहर है और हमारी आने वाली पीढ़ी इस विषय में जान सके उसके लिए इस पुराने भवन को सुरक्षित रखना अति आवश्यक है।
नागनाथ मंदिर
नागनाथ इंटरकॉलेज के निकट स्थित है नाग मंदिर। कहा जाता है कि नागों के राजा तक्षक नाग का ये गढ़ रहा है। स्थानीय लोगों के मुताबिक इसे नागवंशियों का गढ़ भी आना जाता है। उनके मुताबिक पहले यहां एक नागशिला हुआ करती थी जिसके दर्शन करना बहुत ही पुण्यदायक होता था। पहले नागपंचमी के दिन यहां विशाल मेले का आयोजन किया जाता था। कहते है कि नागनाथ क्षेत्र में नाग वंशियों का जबरदस्त प्रभाव रहा था । यही वजह है कि हूँण, कत्यूरी, गोरखा ये गढ़ जीत नहीं पाए। यहाँ तक की अंग्रेज भी इस इलाके में अपना वर्चस्व कायम नहीं कर पाए।
ऋषिकेश से रुद्रप्रयाग और कर्णप्रयाग होते हुए आप जब इस ऐतिहासिक नगरी में पहुंचेंगे तो आपका बहुत ही आकर्षक बर्फीली चोटियों और जमीं पर उतर आये बादलों से आमना सामना होगा तो दूसरी और अपूर्व शांति की प्राप्ति होगी। पोखरी में ठहरने के लिए आपको PWD का गेस्ट हाउस और होटल मिल जायेंगे। मई से अक्टूबर का महीना यहां जाने के लिए उत्तम है। हां अगर आप यहां जा रहे है तो अपने साथ गर्म कपडे रखना न भूलें क्योंकि यहां मौसम कभी भी बदल सकता है।
©द्वारिका चमोली
5 टिप्पणियाँ
वाह बहुत ही सुन्दर जानकारी... हमारी देवभूमि प्रक्रितक खजानों से परिपूर्ण है. जय उत्तराखण्ड
जवाब देंहटाएंबहुत बहुत आभार कुकरेती जी
जवाब देंहटाएंबहुत सुंदर
जवाब देंहटाएंसती लोगों का देवस्थान और नागनाथ पोखरी उत्तराखंड के नियायत शुरुआती बसावट के गांव हैं। जब उत्तराखंड में नाममात्र की बसावट रही होगी। सती लोगों के गांव देवस्थान की प्रत्यक्ष भौगोलिक स्थिति ही इसे महत्वपूर्ण स्थान प्रदान करती है। इसके समीप उत्तर भारत के एकमात्र कार्तिकेय मंदिर ,नागपुरगढ़ी और विनायक धार जैसे नाम स्थलों का होना और देवस्थान में सती लोगों की उपस्थिति इसे उत्तराखंड के सबसे महत्वपूर्ण परमब्रह्मण कार्तिकेतपुरम साम्राज्य के अभिन्न रूप से जोड़ती है देवस्थान ग्राम का मंदिर भी उत्तराखंड के अति प्राचीन मंदिरों के साथ का है। सती लोगों के ज्योतिर्मठ स्थित गांव डाड़ों यानि देव ढौंढ जिस पर जोशीमठ शहर बसा है,नंदप्रयाग के राजबख्टी और लंगासू के बढाणु गांव कार्तिकेयपुरम साम्राज्य से जुड़े अनछुए ऐतिहासिक तथ्यों को समेटे हैं। ध्यान रहे उत्तराखंड में सती लोग केवल उसी श्रृंखला में पाए जाते है जहां कार्तिकेयपुरमकालीन मंदिर अवस्थित हैं। चाहे गढ़वाल चाहे कुमायूं। इनकी बसावट के समीप विनायक, डूंगरी और ढौंढ जैसे नाम निकटता से जुड़े रहते हैं। वैसे गढ़वाल में राजवंशी थपलियालो की वंश परंपरा भी इन्हे सतियों से ही शुरु करती है। ये मूलतः सती ही थे जो थापली में बसने से थपलियाल हो गए। देवस्थान और नागनाथ पोखरी के चलते ध्यान आया।
जवाब देंहटाएंलेख को आगे बढ़ाने के लिए आपकी जानकारी बहुत ही उपयोगी सिद्ध होगी। आपका आभार व अभिनंदन माननीय
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