उत्तराखंड का प्रमुख ट्रैकिंग स्थल चंद्रशिला-जहां आपको होंगे पंच केदार में से एक तुंगनाथ के दर्शन
ट्रैकिंग के दीवानों के लिए उत्तराखंड मनपसंद जगह हमेशा से रही है क्योंकि यहां ट्रैकिंग के साथ साथ प्रकृति का अद्भुत नज़ारा भी देखने को मिलता है। यदि आप भी ट्रैकिंग में रूचि रखते है तो आपको आज एक खूबसूरत जगह बताते हैं जिसका संबंध भगवान शिव के साथ साथ रामचंद्र जी पांडवों एवं चंद्रमा की प्रेम कहानी से भी है और उत्तराखंड का सबसे प्रसिद्ध ट्रैकिंग डेस्टिनेशनों में से एक है जिसे लोग चंद्रशिला के नाम से जानते है। उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले के चोपता नामक स्थान से आप चंद्रशिला ट्रैक की राह पकड़ सकते है। चोपता से 4 किलोमीटर की चढ़ाई चढ़ने के बाद पंच केदारों में से एक तुंगनाथ मंदिर होते हुए आप चंद्रशिला पहुंच सकते है। तुंगनाथ से डेढ़ किलोमीटर की खड़ी चढ़ाई चढ़ने के बाद आप चंद्रशिला पहुंचकर राह की सारी थकान को वहां के मनमोहक दृश्यों को देखकर भूल जायेंगे।
चंद्रशिला से जुडी पौराणिक मान्यताएं
इस जगह को जानने से पहले आपको इसके पौराणिक महत्त्व को समझना भी जरुरी है। एक मान्यता के अनुसार राजा दक्ष प्रजापति के 27 कन्याओं में से एक थी रोहिणी, जो चंद्रमा को भा गई और वे उससे प्रेम कर बैठे जब दोनों के प्रेम का राजा दक्ष प्रजापति को पता चला तो उन्होंने आवेश में आकर चंद्रमा को श्राप दे दिया। उनके श्राप से शापित चंद्रमा को क्षय रोग हो गया जिससे मुक्ति पाने के लिए वो तुंगनाथ के समीप एक शिला पर आकर भगवान शिव की तपस्या करने लगे। चंद्रमा की कठोर तपस्या से प्रसन्न होकर भगवान शिव ने उन्हें क्षय रोग से मुक्त होने का आशीर्वाद दिया और कहते है कि तभी से इस स्थान को चंद्रशिला के नाम से जाना जाने लगा। इस स्थान की चोटी पर एक मंदिर भी बना है। लोगों के अनुसार इस स्थान पर ट्रैकिंग करने के पश्चात् इस मंदिर में दर्शन अवश्य करने चाहिए।
रामायणकाल से भी इस स्थान को जोड़ा गया है। ग्रंथों में भगवान राम को शिव का परम उपासक माना गया है। कहते हैं जब भगवान राम ने रावण बद्ध कर लंका जीती थी तो उसके बाद उनका मन काफी व्याकुल था वे खुद को ब्राह्मण हत्या का अपराधी मानने लगे थे और इसका प्रायश्चित करने के लिए उन्होंने इस स्थान पर आकर भगवान शिव की तपस्या की थी। ऐसी ही एक मान्यता के अनुसार महाभारत में पांडवों ने कौरवों को जीत तो लिया लेकिन इस युद्ध में अपनों के बद्ध करने से वो अति व्याकुल थे इसके लिए उन्होंने महर्षि व्यास से उपाय पूछा तो व्यास जी ने कहा कि इस युद्ध में अपने भाइयों व गुरुओं को मारने के बाद आपको ब्रह्महत्या का प्रकोप सत्ता रहा है और इससे उन्हें सिर्फ महादेव ही बचा सकते है। महर्षि व्यास की सलाह पर अमल करते हुए वे भगवान शिव से मिलने हिमालय पहुंचे लेकिन महादेव इस युद्ध के चलते उनसे नाराज थे इसलिए पांडवों को भ्रमित करने के लिए उन्होंने भैंसे का रूप धरा और भैसों के झुंड में शामिल हो वहां से निकल गये किंतु भीम ने उन्हें पहचान लिया और वे उनके पीछे भागे ये देखकर शिव ने एक-एक कर अपने शरीर के अंग पांच स्थानों पर छोड़ दिए जिन्हें केदारधाम या पंच केदार के नाम से जाना जाता है।
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