मित्रता भावों, संवेदनाओं, वात्सल्य, प्रेम और बहुआयामी रंगों का समन्वय है
अगस्त का प्रथम रविवार अंतरराष्ट्रीय मित्रता दिवस के लिए समर्पित है। इस अवसर पर सोशल मीडिया में मित्रता के आदर्श के रूप में तरह-तरह के संदेश प्रचारित, प्रसारित किए जाएंगे और मानव मन और मस्तिष्क इन आदर्शों की कसौटी में अपने अपने मित्रों को परखने का प्रयास करेंगे और मित्रता के मामले में स्वयं की संपन्नता और विपन्नता का आकलन करेंगे ।
भारतीय धर्म ग्रंथों में मित्रता के अनेक उदाहरण हैं जैसे श्री कृष्ण -सुदामा मित्रता , अर्जुन -श्री कृष्ण मित्रता , सुग्रीव और श्री राम की मित्रता, दुर्योधन और कर्ण, द्रौपदी और श्री कृष्ण की मित्रता।
लेकिन मित्रता का सर्वाधिक लोकप्रिय उदाहरण श्री कृष्ण का है जिसमें बहुआयामी रंगों के साथ मानवता के लिए संदेश के साथ साथ जीवंता से परिपूर्ण है।
मित्र व सखा के रुप में श्री कृष्ण जिस चरित्र के साथ जुड़े , उसके सौभाग्य के द्वार खुलने के साथ-साथ उद्धार भी हो गया । मित्र के रुप में कृष्ण का चरित्र यह संदेश देता है कि मित्रता ऐसी कीजिए कि मित्र के गुणों, चरित्र , यश और ज्ञान में उत्तरोत्तर वृद्धि हो।
आज हम जिस भागदौड़ भरी यंत्र वादी युग में जी रहे हैं, वहां हर मनुष्य नाना प्रकार के भोगों में लिप्त रहकर भी नितांत असहाय और अकेला है। सोशल मीडिया में जिसके आभासी मित्रों की सूची जितनी लंबी है ,वास्तविक दुनिया में वह उतना ही अकेला है। आज हर व्यक्ति ढूंढ रहा है कृष्ण जैसा मित्र जो विपरीत परिस्थितियों में उसे ढांढस बधाए, और चाह है अर्जुन और श्री कृष्ण के संबंध की भांति अंतरंगता की जिसमें सम्मुख निसंकोच होकर हृदय व जीवन के समस्त उद्गार मस्तिष्क की समस्त उलझनो को प्रकट कर दे।
आज महिलाओं के साथ कोई दुर्व्यवहार होता है तो सर्वप्रथम श्री कृष्ण की द्रौपदी को सखा के रूप में दी गई सहायता अनायास ही स्मरण हो आती है। स्त्री पुरुष संबंध आज के समय में जितने स्वच्छंद व स्वतंत्र हैं पहले कभी नहीं थे। इसी अनियंत्रित स्वतंत्रता के उपभोग ने मर्यादाएं ध्वस्त कर दी हैं। आज की नारी किसी पुरुष मित्र को चोटिल होने पर अपने आंचल का छोर स्नेह रूप में सहजता से बांधने की हिम्मत नहीं कर सकती क्योंकि मुक्त परिवेश के बावजूद स्त्री पुरुष की दोस्ती में श्री कृष्ण और द्रौपदी जैसी उच्च स्तरीय गरिमा और नैतिकता लुप्त होकर शंकाओं के काले बादल मंडरा रहे हैं । आज नारी की अस्मिता सरेआम तार तार होते हुए भी कोई पुरूष उसे मर्यादा की चुनर उड़ाने आगे नहीं आता।
आज सुदामा आर्थिक रूप से संपन्न होने के बावजूद नैतिक, मानसिक, चारित्रिक रूप से विपन्नताओ के दलदल में धंसा जा रहा है परन्तु कृष्ण रूपी तारणहार सखा नदारद है।
आज यंत्रवादी संसार रणक्षेत्र बन गया है , जहां अर्जुन रूपी मनुष्य दिन प्रतिदिन संबंधों में वैमनस्य ,हताशा, घृणा ,अवसाद और एकाकीपन का सामना कर रहा है परंतु मार्गदर्शक के रुप मे जीवन सारथी के रूप में श्री कृष्ण रूपी मित्र मिलना असंभव है।
श्री कृष्ण का जीवन चरित्र मित्रता का उत्कृष्ट उदाहरण है जो यह सीख देता है मित्रता के मायने बेहद गहरे, व्यापक तथा विशाल हैं, जिसके तले भावो और एक दूसरे के प्रति विश्वास व श्रद्धा का अथाह समुद्र हिलोर ले रहा है।
अनेक मित्रों के समूह में बैठकर पर निंदा करना, अपने से भिन्न विचारधारा वाले लोगों को गिराने के षड्यंत्र रचना, संकीर्ण हितों व विचारों के आधार पर एकजुटता मित्रता नहीं वरन रसातल में खींचने वाला कोरा दलदल मात्र है।
सच्ची मित्रता तो कृष्ण के चरित्र के समान होती है, जो जिस भी संबंध को जिस भाव से स्पर्श करती है, उसके व्यक्तित्व को विस्तार देती है, विचारों को अनन्य आकाश देकर जीवन सागर को समृद्ध कर मुक्त कर देती है ।
जीवन में श्रीकृष्ण जैसा मित्र मिलना मुश्किल है लेकिन श्री कृष्ण जैसा सरल सहज मित्र बना बेहद सरल है। इसके लिए आवश्यक है सर्वप्रथम स्वयं का मित्र बनना, श्री कृष्ण के जीवन चरित्र को स्वयं के जीवन में उतारकर हम स्वयं के बेहतर मित्र बन सकते हैं।
कठिन से कठिन परिस्थितियों में भी सहजता से मुस्कुराने का हुनर रखिए। विपत्ति में विस्तार की क्षमता विकसित कीजिए। आसपास विपन्नता के प्रतीक के रूप में जो अनेक सुदामा है, उन्हें बेहतर मार्ग दिखा सकते हैं और श्री कृष्ण के चरित्र और आदर्शों को आत्मसात कर नारी जाति का विश्वास प्राप्त कर सकते हैं । इन सबसे ऊपर श्री कृष्ण की भांति प्रकृति से निरद्वंद होने का प्रयास करना चाहिए, जिससे आपके अपने आसपास के लोगों की आप के रुप में मित्र की तलाश पूर्ण हो जाए।
आइए मित्रता दिवस मे संकल्प लें कि कृष्ण के समान आदर्श मित्र बनने की, जो धर्म, जाति ,संप्रदाय और लिंग आदि के भेदभाव से ऊपर केवल विशुद्ध भावों से विचार तथा व्यवहार करते हैं।
बीना नयाल
पुत्री- स्वर्गीय दीवान सिंह नयाल
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