न जाने कहां चले गए वो विशालकाय गिद्ध जो पर्यावरण को
भी रखते थे शुद्ध
हमने/आपने अपने गांवों में देखा है कि कभी गिद्ध दूर के जंगलों में रहते थे। मानव बस्तियों पर वह कभी भी हमला नहीं करते थे। उनका अपना एक क्षेत्र हुआ करता था जहां वह रहा करते थे। विशाल पंखों के स्वामी या यूं कहें गिद्ध पक्षीराज हैं। दुनिया का सबसे बड़ा उड़ने वाला पक्षी गिद्ध ही है। इन्हें हम प्राकृतिक स्वच्छक भी कहें तो अतिसयोक्ति न होगी। यह घंटों का काम मिनटों में कर देते हैं। यह मांस को सड़ने से पहले महामारी को रोकने में सहायक होते हैं। 1990 के बाद गिद्धों में भारी मात्रा में गिरावट देखी गई है। वैज्ञानिकों ने अपने शोध में पाया कि गाय, भैंस, बैलों को उनके सूजन और दर्द में दी जाने वाली दवा के अंश इनके मृत शरीर में पाए गए हैं। तब सरकार ने वर्ष 2008 के उपरांत इन दवाइयों पर रोक लगाई। समाज में उपेक्षित रहने वाले गिद्ध प्रकृति के लिए कितने आवश्यक हैं इस पर हमें एकबारगी ईमानदारी पूर्वक मनन करना पड़ेगा। गिद्धों की कमी का सबसे बड़ा खामियाजा पारसी समाज को झेलना पड़ रहा है। पारसी लोग अपने समाज के किसी भी व्यक्ति की अंतेष्टि खुले में छोड़कर करते हैं। ताकि उनके मृत शरीर को गिद्ध खा जाएं। अब पारसी समाज भी इसका दूसरा विकल्प खोज रहे हैं।
हमारे पहाड़ों में जब पशु बलि दी जाती थी तब ये विशालकाय गिद्ध उन बलि दिए गए मृत पशुओं को खा जाते थे। बलि का अर्थ भैंसाओं की बलि से है। पहाड़ों में हरेक परिवार सुख और संपन्नता के साथ रह रहा था। जो पहाड़ी लोग मैदानी भागों में आजीविका हेतु आते थे सेवनिवृति के उपरांत फिर पहाड़ों में चले जाते थे अपने परिवारों के साथ। 1980 के बाद जो पहाड़ी सेवानिवृत हुए और उन्होंने अपने लिए मैदानी भागों में ही प्लॉट, फ्लैट, मकान खरीदने शुरू किए और वो यहीं के होकर रह गए। गांवों से जो भी नवयुवक यहां पर आए, वे भी अपने लिए एक झोपड़ी का प्रबंध करने लगे। जो लोग यहां पर पहले से ही थे उन्होंने अपने बच्चों को यहीं पर अच्छी शिक्षा दी और यहीं के स्थायी नागरिक बन गए। इस बीच एक होड़ सी मची, मैदानी भागों में अपने लिए एक अदद मकान के लिए। जो भी आया पहाड़ से वह इसी कोशिश में लग गया और सफल भी हुआ। अब पहाड़ से नवयुवक मैदानी भागों की तरफ आने लगे और गांवों में रह गए सिर्फ बुजुर्ग मां–बाप। उनकी भी उम्र होती गई और पहाड़ वीरान होने लगे। सभी लोग अपने बच्चों की अच्छी परवरिस और अच्छी शिक्षा के फेर में यहीं के होकर रह गए और पहाड़ खाली होते गए। पहाड़ इंसानों से ही खाली नहीं हुए, जानवरों से भी पहाड़ खाली होते गए।
पहाड़ों के गाँव खाली हुए तो गांवों से इंसान और जानवरों में गाय, भैंस, भैंसा, बैल सभी की संख्या में 95 से 98% की गिरावट आई। गिद्धों के लिए पहाड़ों में पर्याप्त मात्रा में भोजन की व्यवस्था थी किंतु पहाड़ से मैदानी भागों की तरफ पलायन से गिद्धों पर भोजन का संकट गहरा गया। धीरे धीरे पहाड़ से गिद्ध समाप्त होते गए और अब सिर्फ उनकी स्मृति शेष है।
गिद्ध कितने विशालकाय और ताकतबर होते हैं इसके लिए एक पौराणिक गाथा का उल्लेख कर रहे हैं। त्रेता युग में जटायु और संपाती नाम के दो गिद्ध भाई थे। जब स्वर्णनगरी महाधिपति दशानन रावण अपने पुष्पक विमान से देवी सीता को लंका का स्वामिनी बनाने के इरादे से हरण करके लंका ले जा रहा था उस समय आकाश में जटायु ने रावण से युद्ध किया था। उस युद्ध में रावण ने जटायु का एक पंख काट दिया था। तब से वह उड़ न सका। किंतु इस युद्ध में रावण जटायु के प्रबल प्रहार से काफी घायल हो गया था और लगभग तीन से चार माह तक बिस्तर पर पड़ा रहा। जटायु ने ही राम और लक्ष्मण को रावण के बारे में बताया था उसके तुरंत बाद ही जटायु ने अपने प्राण त्याग दिए। जब बानर सेना देवी सीता की खोज में जंगलों में भटक रही थी तब उनकी भेंट पक्षीराज संपाती से हुई। संपाती ने ही हनुमान, अंगद और जामवंत को बताया था कि देवी सीता लंका में है। संपाती की दूर की नजर बहुत तेज थी उसने वहीं से समुद्र पार लंका में देवी सीता को देख लिया था। तब हनुमान जी लंका में सीता की खोज में गए।
गिद्धों के बारे में कुछ बातें
गिद्ध एक ऐसी विशालकाय चिड़िया है जिसकी खानपान की आदतें पारिस्थितिकी तंत्र या ईको सिस्टम के लिए ज़रूरी हैं. खैर, गिद्ध के बारे में हम चाहें जैसी भी राय रखते हों, लेकिन उनके बारे में एक बात तो साफ़ है कि वो ख़तरे में हैं. पिछले एक दशक के दौरान भारत, नेपाल और पाकिस्तान में उनकी तादात में 95 प्रतिशत तक की कमी आई है और ऐसे ही रुझान पूरे अफ्रीका में देखे गए हैं. ये पक्षी जिन शवों को खाते हैं, उससे उनके शरीर में ज़हर पहुंच रहा है. कुछ लोग मानते हैं कि जानवरों को दी जाने वाली दवाओं के कारण ऐसा हो रहा है, जबकि दूसरे लोग मानते हैं कि नियमों को ताक पर रखकर किए जा रहे शिकार के कारण इनकी संख्या घट रही है. इनका शिकार इसलिए भी किया जा रहा है ताकि ये गैंडों और हाथियों की मौत के बारे में चेतावनी न दे सकें.
गिद्ध सबसे ऊंची उड़ान भरने वाला पक्षी है. इसकी सबसे ऊंची उड़ान को रूपेल्स वेंचर ने 1973 में आइवरी कोस्ट में 37,000 फीट की ऊंचाई पर रिकॉर्ड किया था, ये ऊंचाई एवरेस्ट (29,029 फीट) से काफ़ी अधिक है और इतनी ऊंचाई पर ऑक्सीजन की कमी से ज़्यादातर दूसरे पक्षी मर जाते हैं. थॉमसेट बताते हैं, गिद्ध भोजन की तलाश में एक बड़े इलाक़े पर नज़र डालने के लिए अक्सर ऊंची उड़ान भरते हैं.,PA
गिद्ध अपने भोजन के लिए काफ़ी अधिक दूरी तय कर सकते हैं. रूपेल्स वेंचर ने हाल में एक गिद्ध को तंजानिया स्थित अपने घोंसले से उड़ात भरते हुए केन्या के रास्ते सूडान और ईथोपिया तक सैर करते हुए कैमरे में क़ैद किया. शोधकर्ताओं के एक अंतरराष्ट्रीय दल ने पाया कि सूखे के दौरान केन्या के मसाई मारा रिज़र्व से ये पक्षी जंगली हिरणों का पीछा करते हुए अपने भोजन की तलाश में दूसरे स्थानों तक जाते हैं. सीमाओं को पार करने की इस आदत के कारण इन पक्षियों को परेशानी भी उठानी पड़ती है.
तुर्की के गिद्ध अपने पैरों पर पेशाब करते हैं और उनकी ये आदत आपको भले ही अच्छी न लगे, लेकिन वैज्ञानिकों का अनुमान है कि उनकी इस आदत से उन्हें बीमारियों से बचने में मदद मिलती है.सड़े हुए मांस पर खड़े होने के कारण गिद्धों के पैरों में गंदगी लग जाती है और ऐसा अनुमान है कि गिद्धों के पेशाब में मौजूद अम्ल उनके पैरों को कीटाणुओं से मुक्त बनाने में मदद करता है।
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