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जोशीमठ का तिमुंडिया मेला जिसमें पश्वा खाता है एक बकरा और 40 किलो चांवल

जोशीमठ का तिमुंडिया मेला जिसमें पश्वा खाता है एक बकरा और 40 किलो चांवल


जोशीमठ का तिमुंडिया मेला जिसमें पश्वा खाता है एक बकरा और

40 किलो चांवल 

कर्णप्रयाग : यूं तो उत्तराखंड में अनेकों मेले लगते है लेकिन तिमुंडिया मेला इसलिए विशेष है कि इसे प्रदेश में चार धाम यात्रा को सरल और सुगम बनाने के तौर पर  मनाया जाता है।  बदरीनाथ धाम के कपाट खुलने से एक सप्ताह पूर्व शनिवार या मंगलवार को जोशीमठ के नरसिंह मंदिर में तिमुंडिया वीर की पूजा की परंपरा है। इसमें तिमुंडिया वीर अपने पश्वा पर अवतरित होते हैं। पश्वा समस्त श्रद्धालुओं के समुख एक बकरी, 40 किलो चांवल, 10 किलो गुड़ और 2 गड़े पानी पीता है।  पश्वा को भोग लगाने के बाद ही पूजा संपन्न होती है। इस दौरान हजारों की संख्या में श्रद्धालु इस मेले के साक्षी बनते हैं।

क्या है इसके पीछे मान्यता 

जैसा कि नाम से ही विदित होता है, तिमुंडिया तीन सिर वाला वीर था। वह एक सिर से वेदों का अध्ययन, दूसरे सिर से दिशाओं का अवलोकन और तीसरे सिर से मांस का भक्षण करता था।  तिमुंडिया ने जोशीमठ विकासखंड के ह्यूंणा गांव के जंगलों में आतंक मचाया हुआ था वो हर दिन एक मनुष्य का भक्षण करता था। कहा जाता है कि एक दिन माँ दुर्गा देवी यात्रा पर थी लेकिन तिमुंडिया के डर से उनके स्वागत के लिए गांव का कोई भी व्यक्ति नहीं आया । काफी घूमने के बाद मां दुर्गा को पता चला कि लोग तिमुंडिया राक्षस के डर से घर से बाहर नहीं निकल रहे है। मां को ये भी ज्ञात हुआ कि वो हर दिन एक व्यक्ति को अपना आहार बनाता है। इस पर माँ ने गांव वालों की रक्षा का निर्णय लिया और गांव के लोगों से राक्षस का आहार बनने के लिए मना किया। उनके कहने पर जब तिमुंडिया के पास कोई नहीं जाता है तो क्रोधित तिमुंडिया गर्जना करते हुये गॉव में पहुँचता है। माँ दुर्गा और तिमुंडिया के बीच भयंकर युद्ध होता है। माँ दुर्गा उसके तीन में से दो सिर काट देती है। एक सिर कटकर सेलंग के आसपास गिरता है उसे पटपटवा वीर और एक उर्गम के पास जिसे हिस्वा राक्षस कहते है। और ज्यों ही माँ उसका तीसरा सिर काटने को होती है तो राक्षस माँ के चरणों में पड़ जाता है । मां उसकी वीरता से बहुत प्रसन्न होती है और उसे अपना वीर बना लेती है। इसके बाद वे उसे आदेश देती है कि आज से वो मनुष्य का भक्षण नहीं करेगा उसे साल में एक बार बकरी की बलि और अन्य खाना दिया जायेगा, तब से ही ये परम्परा चली आ रही है। मां दुर्गा के आदेशानुसार तिमुंडिया को साल में एक बार पशु बलि के रूप में एक बकरी, 40 किलो चावल 10 किलो गुड़ और 2 गड़े पानी दिया जाता है। मेले में पूजा अर्चना के समय तिमुंडिया अपने पस्वा पे सवार होता है और ये सब सामग्री सबके सामने खाता है। यह परम्परा सदियों से चली आ रही है।


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