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आइए जानते है उत्तराखंड के एक बुजुर्ग का जीवन वृत्तांत

आइए जानते है उत्तराखंड के एक बुजुर्ग का जीवन वृत्तांत


आइए जानते है उत्तराखंड के एक बुजुर्ग का जीवन वृत्तांत  

(स्वतंत्र पत्रकार चंद्र सिंह रावत उत्तराखंड की प्रकृति और संस्कृति को विश्व पटल पर आगे बढ़ाने के लिए लगातार प्रयास रत है। इस लेख में वे उत्तराखंड के एक ऐसे व्यक्ति का जीवन वृतांत बता रहे है जो अपने जीवन के 90 बसंत देख चुके है)


19 मई 2022 को मैं, बिचला चौकोट विकास समिति के अध्यक्ष श्री जगत सिंह जी के साथ हमारी समिति के वयोवृद्ध और वरिष्ठ सदस्य श्री गोपाल दत्त उनियाल जी ग्राम तल्ला सिरा को मिलने उनके निवास स्थान गोंडा, दिल्ली गए। हम सुबह लगभग 10:15 पर उनके घर पर थे और 12:30 तक उनके साथ बैठे रहे। उन्होंने जो हमें बताया उसे लिख रहा हूं। यह हम सबके लिए सामान्य ज्ञान की तरह भी है।



उन्होंने बताया कि 

उनका जन्म 1933 में हुआ। उनके पास गाँव में सबसे कम लगभग 40 नाली जमीन थी और गाँव में सबसे गरीब परिवार उन्हीं का था। उनके पिताजी बड़े ही बलिष्ठ और ताकतबर इंसान हुआ करते थे। उनकी माता जी बहुत ही सरल, साधारण, मृदुभाषी, अल्पभाषिणी महिला थी। जो घर पर आ जाए वह बिना खाए नहीं जा सकता था ऐसा व्यवहार उनकी माता जी का था।

1944 में उनके पिताजी श्री मुश देव उनियाल जी का आकस्मिक निधन हुआ। वह शिवालय और सिरा को जाने के रास्ते में गिर गए थे।

- उनके 9 भाई और 2 बहिनें थी। भाइयों में उनका क्रम 6ठा था।

- 15 अगस्त 1947 को 15 वर्ष की आयु में उन्होंने विद्यालय जाना शुरू किया। उन्होंने यह भी गुनगुनाया– विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झण्डा ऊंचा रहे हमारा।

- उनके सबसे बड़े भाई साहब आज के सर्वोच्च न्यायालय तब फेडरल कोर्ट ऑफ इंडिया में जमादार के पद पर कार्यरत थे। तब फेडरल कोर्ट का ऑफिस आज के संसद भवन में हुआ करता था। उसे चैम्बर ऑफ प्रिंसेस कहते थे। उस समय फेडरल कोर्ट में तीन जज हुआ करते थे जिनमें दो अंग्रेज और एक हिन्दुस्तानी थे। गाँव में पिताजी की मृत्यु होने पर उन्हें गांव जाना पड़ा। अपने बदले में उन्होंने ग्राम तला चनोली के श्री भवानी दत्त नौटियाल जी को नौकरी पर लगाया। उन्हीं के प्रताप का प्रसाद है कि आज हमारे क्षेत्र के लगभग 300 से अधिक लोगों ने सुप्रीम कोर्ट में काम किया है या कर रहे हैं। बूबू ने बताया कि यदि उनके भाई उस समय नौकरी नहीं छोड़ते तो इस समय उनके परिवार के सभी लोग सुप्रीम कोर्ट में लगे होते। आज जो भी लोग सुप्रीम कोर्ट में हैं सब उनके बड़े भाई के बदौलत हैं।    

- बड़े भाई साहब जब नौकरी छोड़ घर संभालने के लिए गाँव आ गए तो गाँव में लोगों ने उन्हें कहा कि कम से कम एक छोटे भाई को स्कूल भेज दो। तब उन्होंने अपने सबसे छोटे भाई को जाभर के स्कूल में पढ़ने के लिए भेज दिया। जाभर के स्कूल को ‘टिकुवा स्कूल’ भी कहते थे। उस समय त्यौथा के मास्टर टेक राम कबड़वाल जी जाभर में पढ़ाते थे। वह उस समय के चौथी पास थे और लोवर प्राइमरी को पढ़ा सकते थे। उन्हीं के नाम से स्कूल का नाम पड़ा। छोटे भाई को तल्ला सिरा से जाभर तक ले जाने की जिम्मेदारी बूबू की थी। क्योंकि छोटा भाई काफी छोटा था कहीं वह गिर न जाए तब उनके साथ बूबू को भी जाना पड़ा। वे जाते, भाई को कक्षा में छोड़ देते और स्वयं बाहर खड़े रहते। एक दिन मास्टर जी ने पूछा कि बाहर क्यों खड़े हो। तब उन्होंने सारी बात बताई। मास्टर जी ने कहा कि कल से बाहर मत बैठना, कक्षा में आना। मास्टर जी घर पर भी आए और ईजा को समझा गए कि इसे स्कूल भेजना और दूसरे दिन से बूबू भी स्कूल जाने लगे। उस समय बूबू की उम्र 15 साल थी। स्कूल में बूबू कि उम्र 6 नवम्बर 1933 लिखवा दी गई।

- उस जमाने में बच्चे स्कूल नहीं जाते थे। बच्चों को बुला बुला और पकड़ पकड़ कर स्कूल ले जाते थे।

- बूबू ने बताया कि तब दूसरी तक को लोअर प्राइमरी कहते थे। चौथी को प्राइमरी कहते थे। सातवीं तक को मिडल कहते थे और 10 वीं को मैट्रिक कहते थे।

- बूबू ने स्याल्दे से मिडल पास किया। उन्होंने बताया कि वह हमेशा कक्षा में प्रथम आते थे। गणित में उनके 100 में से कभी भी 99 नहीं आए। 100 में से 100 ही आते थे। वह पूरे चौकोट के हीरो थे चौकोट में उनका नाम था। ऐसा बूबू जी ने बताया। वह हमेशा क्लास मॉनिटर भी रहे।

- 1953 में बूबू दिल्ली आ गए। तब उनकी आयु 20 वर्ष की थी। उन्होंने बताया कि उन दिनों सरकारी नौकरी में सबसे अधिक प्राथमिकता पाकिस्तानी रिफुजीयों को दी जाती थी।

- उन दिनों दिल्ली में मैट्रिक की फी 8 रुपए और हायर सेकंडरी की फी 26 रुपए हुआ करती थी। उन्होंने दिल्ली में हाई स्कूल की पढ़ाई की। उन दिनों हाई स्कूल तीन साल का होता था। फिर उन्होंने हायर सेकंडरी पास की दिल्ली में। उन्होंने बताया कि हाई स्कूल और हायर सेकंडरी की पढ़ाई में उनका कुल 34 रुपया खर्च हुआ। किताबों पर कोई खर्च नहीं हुआ।

- उनको लड़की देने के लिए कोई तैयार नहीं होता था।

- उनका विवाह 23 वर्ष की आयु में हुआ। जो कि एक बहुत बड़ी उम्र हुआ करती थी। यह सब उनकी गरीबी के कारण हुआ। अन्यथा उस अवधि में शादी – व्याह 18 वर्ष से पहले हो जाया करते थे।

- बूबू ने बताया कि उस जमाने में किसी बहू का 20 की उम्र तक बच्चा नहीं होता था तो यह बहुत ही चिंता का विषय होता था और दूसरे विवाह तक की चर्चा करने लगते थे। दुनिया भर के लांछन उस पर लगाए जाते।

- बूबू ने बताया कि 1950 तक गांवों में चाय नहीं हुआ करती थी। कोई घनिष्ठ आ जाय तो उन्हें दूध देते थे। दूध खास को ही दिया जाता था।

- बूबू ने बताया कि कमेटपानी-गुदलेख-जुनियागढ़ी-गवाड़ीगाँव-इकुखेत, चनोली-सेरा-केलानी से सिमलचौरा, पिलखी तक बह रही नदी को ‘डोबरी ढलान’ कहते हैं। उसके बाद डोबरी ढलान का संगम बिनौ आज के विनोद नदी में हो जाता है।

- बूबू ने बताया कि हमारे गाँव घरों में ताले तो बहुत दूर की बात है सांकल तक नहीं होते थे।

- बूबू ने बताया कि आज जिस घर में हम बैठे हैं उस घर में उन्होंने गाय और भैंसे भी पाली हैं।

- बूबू ने बताया कि उन्होंने स्कूल जाना बाद में शुरू किया पहले तंबाकू पीना सीख लिया था। उन दिनों भीं चिलम बनाते थे ग्वाला जाते समय। जमीन में दो छेद किए जाते थे और जमीन के अंदर दोनों छेदों को मिलाया जाता था। ताकि दोनों ओर से हवा आरपार हो सके। दोनों छेदों के एक तरफ तंबाकू रखा जाता था और उसमें आग लगाई जाती थी दूसरी तरफ से हवा खींचकर दूसरी तरफ से हवा खींचकर दूसरी तरफ की आग को सुलगाया जाता था। इस तरह गाँव के सभी बच्चे चाहे अनचाहे तंबाकू पीना सीख जाते थे। बीड़ी का जमाना बाद में आया।

- बूबू ने बताया कि दिल्ली में वे लोग जयनतेश्वर मंदिर समिति चलाते थे। बूबू जी उसके सचिव थे और उनके साथ श्री बचे सिंह बिष्ट जी ग्राम बितोडी इस समिति के कोषाध्यक्ष थे। यह 1973-1975 की बात है। उसी अवधि और अपने कार्यकाल में उन्होंने जयनतेश्वर शिवालय में माई मंदिर के ऊपर लिन्टर की छत डलवाई।

- बूबू ने बताया कि श्री बचे सिंह बिष्ट जी पैदल ही पूरी दिल्ली को नापते थे। और रिजर्व बैंक में काम करते थे। कोषाध्यक्ष के लिए उनसे अधिक योग्य व्यक्ति कोई नहीं था।

- 1993 में बूबू झिलमिल पोस्ट ऑफिस से पोस्ट मास्टर के पद से सेवनिवृत हुए।

- अगले वर्ष 2023 में बूबू जी 90 वर्ष के हो जाएंगे।

- वे हर वर्ष एक चक्कर गाँव का लगाते हैं। उनका हृदय गाँव के लिए धड़कता है।

हम सभी बूबू जी की लंबी आयु के लिए प्रार्थना करें। परमात्मा उन्हें स्वस्थ रखे।





1 Response to "आइए जानते है उत्तराखंड के एक बुजुर्ग का जीवन वृत्तांत "

  1. श्रीमान गोपाल दत्त(चाचा जी) भी बहुत नेक v ईमानदार इंसान है। गरीबी को कभी अपनी कमजोरी नही बनने दिया। मेहनत से कभी मुंह नही मोड़ा। उनके किस्से हम आज भी एक दूसरे को बताते है। भगवान उनको लंबी उम्र देवे। जय श्री राम

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