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गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाकर ही उत्तराखण्ड के रास्ते मँडराते अंतर्राष्ट्रीय खतरे को रोका जा सकता है। अंतराष्ट्रीय सर्वेक्षणों के पश्च्यात योगी मदनमोहन ढौंडियाल की गंभीर सामरिक समीक्षा



गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाकर ही उत्तराखण्ड के रास्ते

मँडराते अंतर्राष्ट्रीय खतरे को रोका जा सकता है।

 

अंतराष्ट्रीय सर्वेक्षणों के पश्च्यात योगी मदनमोहन ढौंडियाल की

गंभीर सामरिक समीक्षा 










योगी मदनमोहन ढौंडियाल, 
भूतपूर्व सैनिक भारतीय सेना एवं सेवा निवृत अधिकारी
अर्द्धसैनिक बल,गृह मंत्रालय,भारत सरकार।

इस लेख को मैं  राज्य और राष्ट्रहित में लिख रहा हूँ, इसको यदि गंभीरता से लिया गया तो शायद राष्ट्र को सन 1962 जैसे घावों से बचाया जा सकेगा। बात उत्तराखंड की स्थाई राजधानी गैरसैण या किसी क्षेत्र  विशेष के लाभ की नहीं है, उत्तराखंड में जो वर्तमान स्थाई राजधानी गैरसैण का आंदोलन चल रहा है, उसके राजनीतीकरण से देश की सामरिक व्यवस्था को नुकसान उठाना पड़ेगा। यदि कोई नेता या पार्टी इसको राजनीतिक रूप देती है तो समझो यह ऐसी भूल होगी जो सन 1962 में  या काश्मीर में 1947 के समकालीन  नेतृत्व की अदूरदर्शिता के कारण हुई। भारत का कोई भी राष्ट्रवादी ऐसी गलतियों को दोहराने के पक्ष  में नहीं है।

भारत पर निगरानी रखने के लिए चीन की सेना  पश्चिमी थिएटर कमाण्ड से सामरिक ऑपरेशन भारत के खिलाफ करते रही है। उत्तराखंड के चल रहे गैरसैण आंदोलन पर इस कमांड की तिब्बत के माध्यम से कड़ी नजर है। सिर्फ तिब्बत ही नहीं जबसे नेपाल और चीन के सम्बन्ध अच्छे हुए हैं पश्चिम नेपाल में चीन की गतिविधियां बहुत अधिक बढ़ी हैं। अगर भारत नेपाल को शांत देख रहा है तो, यह उसकी गलत फहमी है वहां ड्रैगन  अपने जाल पहले से बिछाए जा रहा है, आज भी बिछा रहा है। ड्रैगन को नेपाल के रास्ते ही भारत के हिमालय को तोड़ने में आसानी है। बात फिर हिंदी चीनी भाई भाई वाले इतिहास को दोहराएगी। भारत की चीन से 3488 किलोमीटर सीमा है उसमे उत्तराखंड के साथ चीन की 345  किलोमीटर सीमा लगती है। दूसरी तरफ नेपाल के साथ उत्तराखंड की सीमा 263 किलोमीटर है।  तीन वर्ष पहले की बात है , चीन के ग्लोबल  टाइम्स भोंपू के अनुसार भारतीय सीमा के पास तैनात चीनी सैनिकों को भविष्य के 'इन्फर्मेटाइज्ड वॉरफेअर' के लिए तैयार किया जा रहा है ,इसमें डोकलाम ही नहीं उत्तराखंड से चीन का बाड़ाहोती से लगता इलाका भी है।  हाल में 100 चीनी सैनिकों का बड़ाहोटी में घुसने का दुस्साहस आप देख चुके हैं। डोकलाम पर आज भी हम चौकन्ने हैं। पीएलए की वेस्टर्न थिअटर कमांड पर  भारत से लगती 3,488 किमी लंबी वास्तविक नियंत्रण रेखा की सुरक्षा की जिम्मेदारी है। चीनी विशेषज्ञों के मुताबिक QTS-11 सिस्टम अमेरिकी सैनिकों द्वारा इस्तेमाल किए जाने वाली तकनीक के बिल्कुल समान है। चीन के सैन्य विशेषज्ञ सोंग जांगपिंग ने सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स को बताया, 'इसे दुनिया का सबसे शक्तिशाली व्यक्तिगत फायरपावर कहा जाता है। QTS-11 सिस्टम में न केवल हथियार शामिल होता है बल्कि यह पूरी तरह से डिजिटलाइज्ड सोल्जर कॉम्बैट सिस्टम होता है। इसमें डिटेक्शन और संचार प्रणाली भी शामिल होती है।' अब यही नहीं चीन की 70 वीं वर्षगांठ पर उसने ऐसे हथियारों का प्रदर्शन किया था ,जिसको देख कर सिर्फ अमेरिका ही नहीं रूस भी बौखलाया हुवा था। इसके ऊपर उस समय ओली के शासनकाल में जिनपिंग का नेपाल दौरा होना और उसके द्वारा पड़ोसियों को धमकाना बहुत बड़े खतरों का संकेत थे। आज वही ड्रैगन रूस के बिलकुल समीप है।भारत को इस समय उत्तराखंड सहित सभी अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं पर सावधानी बरतनी जरूरी है।चीन की राजनीतिक उठापटक के चलते वह भारत के विरुद्ध युद्ध भी घोषित कर सकता है।

चमोली जिले में भारत-चीन सीमा की देखरेख भारत की  इंडो तिब्बतन बॉर्डर पुलिस(आईटीबीपी) करती है। इनका मुकाबला चीन के अत्याधुनिक सैनिक साजो सामान और घनी चीन की तरफ बॉर्डर पर बसाई गयी स्थानीय जनता से होना है। जबकि उत्तराखंड से लगातार स्थानीय लोग पलायन कर रहे हैं तो दूसरी तरफ पश्चिमी उत्तर प्रदेश से पाकिस्तान परस्त एजेंटों की घुशपैठ बढ़ी है। हालत उत्तराखंड में ऐसे बन रहे हैं कि -नेपाल में चीन का प्रभाव तेजी से बढ़ रहा है और नेपाल से चीन भारत के उत्तराखंड में अपने एजेंट मजदूरों या अन्य दूसरे रूपों में भेज  रहा है। नेपाल के रास्ते पाकिस्तान से भी जासूसों का आना जाना शुरू है इसके कई उदाहरण सुरक्षा एजेंसियों द्वारा पकडे गए पाकिस्तानी एजेंट हैं। हमारी सीमाओं की रखवाली करने वाले सुरक्षा बल बिना स्थानीय लोगों की सहायता के संकटकाल में सीमाओं की सुरक्षा इतनी तत्परता से नहीं कर सकते हैं,क्योंकि हिमालय के भौगोलिक मापदंड भी कुछ वजन रखते हैं।

उत्तराखंड के तीन जिले क्रमशः उत्तरकाशी चमोली, पिथौरागढ़, सामरिक और सुरक्षा की दृष्टि से बहुत संवेदनशील रहे हैं। इन जिलों का सैनिक व असैनिक प्रशासन केंद्र के हवाले होना देश को कई मुसीबतों से बचाएगा गैरसैंण को स्थाई राजधानी बनाने वाली दुकानें बंद होनी शुरू हो जाएंगी साथ साथ एक तबका जो दुश्मन देशों के स्लीपर सेलों को इन जिलों में छत देता है ,उनका भी  देश बेचने का व्यापार बंद हो जायेगा। इन जिलों को जिस प्रकार विकास के क्षेत्र में सौतेले व्यवहार का शिकार होना पड़ता है केंद्र के हाथों में आने से बहुत बड़ी राहत मिलेगी।

उत्तराखंड विधानसभा जो देहरादून में किराए पर ली हुई है तो वही जनता के पैसों से बना विधानसभा भवन गैरसैण में खाली पड़ा है इसका कोई अर्थ नहीं निकल रहा है। अर्थ यही है नेता और बड़े अफसरों को हिमालय के इस स्टेशन में ठण्ड लगती है ,वहां सुविधायें विकसित होंगी फिर वह लोग जा सकते हैं इत्यादि बहाने देश की सुरक्षा को हानि पहुंचा रहे हैं। इससे अच्छा कुछ दिन उत्तराखंड के  इन तीन जिलों को  सेना या अर्धसैनिक बलों की देख रेख में रखा जाय क्योंकि देहरादून में जो लोग गैरसैण आने के लिए बहानेबाजी करते रहते हैं,वे देश पर भार  तो हैं ही साथ साथ देश पर आर्थिक बोझ भी हैं। इसी बहाने कुछ परचून छाप नेताओं को गैरसैंण स्थाई राजधानी का मुद्दा मिल जाता है। वे नौटंकियां करते करते राजनीतिक सीढ़ियों के सपने सजोना शुरू कर देते हैं। देश और राज्य वही फटेहाली में पड़े रहते हैं। ऐसे नेताओं की नौटंकियों पर भी पूर्ण विराम लग जायेगा।

सीधी बात है, गैरसैंण में सैनिक प्रतिष्ठान या  चीन की तर्ज पर वेस्टर्न थिएटर जैसा  कोई मुख्यालय  स्थापित करना उचित होगा। यह चीन की बत्ती आने वाले समय में बंद करके रख देगा।  गैरसैंण में बने विधानसभा भवन को सामरिक दृष्टि से तोलना राज्य और देश के हित में है। यह देश की सुरक्षा को मजबूत करेगा ही साथ साथ  इजराइल की तर्ज पर , स्थानीय जनता की गरीबी भी दूर करेगा। फिलहाल गैरसैंण में ग्रीष्मकालीन राजधानी का ड्रामा किनारे करके इसे स्थाई राजधानी बना देना चाहिए    इससे दो अंतर्राष्ट्रीय सीमाओं वाले राज्य उत्तराखंड को राहत मिलेगी। 

भारत के यशस्वी प्रधानमंत्री भाई नरेंद्र दामोदरदास मोदी जी द्वारा आल वैदर रोड का क्रियान्वयन हो या रेल मार्गों की युद्ध स्तर पर क्रियान्वन शैली जरूर देश की सुरक्षा में राहत देगी । गैरसैण फिर स्थाई राजधानी या सफेद हाथी शरदकालीन राजधानी की जगह ,सुरक्षा की भूमिका में सक्रिय सामरिक मुख्यालय होना देश तथा स्थानीय जनता के हित में रहेगा। यह बात उन लोगों को जरूर बुरी लगेगी जिनकी गैरसैंण स्थाई राजधानी वाली राजनीतिक दुकानें देश को चूना लगा रही हैं। यह सलाह राष्ट्र  की सुरक्षा तथा सीमावर्ती पिछड़े जिलों के विकास संबंधी हित की बात होगी।

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