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अपने रूप-रंग और सुंगंध से लुभाता है हिमालय का प्रमुख पुष्प ब्रह्मकमल

 


अपने रूप-रंग और सुंगंध से

लुभाता है हिमालय का प्रमुख पुष्प ब्रह्मकमल 

आज शरद पूर्णिमा है और कहते हैं इस दिन विष्णु जी का ध्यान धरने से मोक्ष की प्राप्ति होती है और निसंतान दम्पतियों का आंगन संतान पुष्प से खिल उठता है। उत्तराखंड में वर्षों पूर्व लोग इस दिन सूर्य अस्त होने के बाद अपने घर से नदी तक के रास्तों को घी के दिए जलाकर रोशन करते थे और केले के पत्ते में दियों  को रख कर नदी में प्रभावित करते थे जिससे सारा वातावरण रौशनी से जगमगा उठता था और लोग श्रीहरि विष्णु स्वरुप को साक्षात् महसूस करते थे। उत्तराखंड के कुछ ऊंचाई वाले स्थानों में ये बहुतायत पाया में जाता हैऔर अब तो कुछ लोग इसकी खेती भी करने लगे हैं। आप में से अधिकांश लोगों ने ब्रह्मकमल के बारे में ही सुना होगा लेकिन हम बता दें कि हिमालय में चार प्रकार के कमल  ब्रह्मकमल, नील कमल, फेन कमल व कस्तूरा कमल पाए जाते है।  आइये आज आपको इनके विषय में थोड़ी जानकारी दे दें। 

सबसे अधिक लुभाता है ब्रह्मकमल 

हिमालय के बुग्याल के मैदानों के बीच अनेकों ऐसे पुष्प खिले होते है जो अपने रंग रूप और सुंगंध के साथ पर्यटकों को खूब लुभाते है इन्ही में से सबसे खास है चार प्रकार के कमल जो पूज्यनीय भी माने जाते है।  इन चार कमलों में से सबसे प्रमुख है ब्रह्मकमल जिसे उत्तराखंड में राज्य पुष्प का दर्जा प्राप्त है। इसका वर्णन वेदों में भी मिलता है। यह पुष्प भगवान ब्रह्मा का प्रतिरूप माना जाता है और इसके खिलने पर विष्णु भगवान की शैय्या दिखाई देती है। यह मां नन्दादेवी का भी प्रिय पुष्प है  इसीलिए इसे पूज्यनीय भी माना गया है। इसे नन्दाष्टमी के समय में तोड़ा जाता है। SALC फैमिली के इस पुष्प का वानस्पतिक नाम Saussurea obvallata है। भारत के अन्य भागों में इसे और भी कई नामों से पुकारा जाता है जैसे- हिमाचल में दूधाफूल, कश्मीर में गलगल और उत्तर-पश्चिमी भारत में बरगनडटोगेस।  यह समुद्रतल से लगभग 3600 से लेकर 4500 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थानों पर पाया जाने वाले इस पुष्प को आप जून से सितम्बर माह के बीच आसानी से देख सकते है इसके बाद पहाड़ों में वर्षा अधिक होने के कारण इन स्थानों तक पहुंचना मुश्किल होता है। सफ़ेद रंग का यह पुष्प खूबसूरत होने के साथ साथ चित को प्रसन्न करने वाली सुगंध लिए होता है।  इसको छूने मात्र से ही हाथों में कई घंटों तक इसकी सुगंध महसूस की जा सकती है। यह पुष्प अमूमन 70 से 80 सेमि. की ऊंचाई लिए होता है और केदारताल , तपोवन, रुद्रनाथ की पहाड़ियों, नंदनवन, क्यारकोटी बुग्याल, गिडारा बुग्याल, रूपकुंड, हेमकुंड, ब्रजगंगा, फूलों की घाटी, केदारनाथ आदि क्षेत्रों में आप ब्रह्मकमल को साक्षात देख सकते हैं। 

ऊन के समान दिखता है

फेन कमल 

हिमालयी क्षेत्र में लगभग 5600 मीटर तक की ऊंचाई पर पाए जाने वाले फेन कमल का वानस्पतिक नाम है सौसुरिया सिम्पसोनीटा और यह बैंगनी रंग लिए  होता है। इसका पौधा लगभग 6 से 15 सेमी तक ऊंचा होता है और यह जुलाई से सितंबर माह के बीच खिलता है। ऊन की भांति तंतुओं से ढके रहने के कारण यह सफेद ऊन सा दिखाई देता है।

कस्तूरा कमल

यह कमल बर्फ की तरह सफेद होता है। इसका वानस्पतिक नाम सौसुरिया गॉसिपिफोरा है। यह भी फेन कमल की प्रजाति में ही आता है।


अति दुर्लभ नील कमल 




इस पुष्प के बारे में अधिक जानकारी न होने के कारण अधिकांश पर्यटक इसे पहचान नहीं पाते।  नीलकमल को भगवान विष्णु का प्रिय पुष्प माना जाता है। इस फूल का वानस्पतिक नाम नेयम्फयस नॉचलि या जेनशियाना फाइटोकेलिक्स है। यह नीले रंग का होता है और समुद्रतल से लगभग 3500से 4500 मीटर की ऊंचाई पर मिलता है।  यह श्रीलंका एवं बांग्लादेश का राष्ट्रीय पुष्प है। कहते हैं  फेन कमल, कस्तूरा कमल और ब्रह्मकमल तो आसानी से दिख जाते हैं लेकिन नीलकमल काफी दुर्लभ है। इसका खिलना एक चमत्कार ही माना जाता है। लेकिन अब सीमांत माणा गांव जो कि बद्रीनाथ धाम से कुछ ही दूरी पर है  के संरक्षण केंद्र में वन अनुसंधान केंद्र ने नीलकमल को उगाने में सफलता अर्जित की है। इस केंद्र में फूलों की अति दुर्लभ प्रजातियां राज्य पुष्प ब्रह्म कमल, फैन कमल भी संरक्षित की गईं हैं। 

औषधीय गुण

बनस्पतिक वैज्ञानिको के अनुसार इस फूल की लगभग 31 प्रजातियां ऐसी है जिनमें चिकित्सीय प्रयोग के लगभग 174 फार्मुलेशनस पाए गए हैं। कहते हैं कि इसकी पंखुड़ियों से टपकते हुए पानी को पीने से शरीर की सारी थकान मिट जाती है। इसकी पत्तियां पाचन शक्ति को बढाती है और हड्डियों को मजबूत करने में कारगर है। इस पुष्प में भरपूर मात्रा में पोषक तत्व पाए जाते हैं जिसके चलते यह बुखार,  खांसी जुकाम, पेशाब संबंधी और लिवर रोग में भी लाभकारी है यही नहीं कुछ वैज्ञानिकों के मुताबिक कैंसर रोगियों में भी इस पुष्प से आशातीत लाभ दिखाई दिए है। 


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