उत्तरकाशी-जिसे उत्तराखंड का काशी विश्वनाथ कहा जाता है
उत्तराखंड का उत्तरकाशी जो कि अपनी खूबसूरती के लिए जाना जाता है। प्राचीन काल में इसे काशी विश्वनाथ के नाम से जाना जाता था तो केदारखंड में इसका उल्लेख बाड़ाहाट के नाम से मिलता है। इस स्थान के चारों तरफ पर्वत शृंखलाएँ है तो नदियां व ताल इसकी खूबसूरती को और बढाती है। 24 फ़रवरी 1960 को टेहरी रियासत से अलग कर इसे जिला बनाया गया। गंगोत्री को जाने वाला मुख्य मार्ग यही से गुजरता है। वरुणावत पर्वत की घाटी में बसे इस खूबसूरत स्थान से कई पौराणिक मान्यताएं भी जुडी हुए है। कहते है राजा भागीरथ ने यही पर अपनी तपस्या की थी।
पौराणिक मान्यतायें
उत्तरकाशी एक धार्मिक आस्था का केंद्र रहा है। पौराणिक मान्यता के अनुसार इसका इतिहास महाभारत से जुड़ा हुआ है। उस समय यहां ढलान जनजातियों का उल्लेख मिलता है। विशेष रूप से किरात उत्तरा, कौरस, खासा, तांगना कुनिंद और प्रतान गनाओ जैसी ढलान जनजातियों का उल्लेख महाभारत में मिलता है और कहा ये भी जाता है कि इन लोगों की विशेष सेवा से पांडव काफी खुश हुए थे व पांडवों को स्वर्ग की खोज में इन जाती के लोगों ने ही सहयोग किया था। इसके उत्तर में अस्सी गंगा और पश्चिम में वरणा नदी है। पुराणों में इसे सौम्य काशी भी कहा जाता है। केदारखंड में वर्णित एक कथा के अनुसार भगवान परसुराम बड़े ही आज्ञाकारी थे एक बार उनके पिता ने उन्हें अपनी माता का वध करने का आदेश दिया पिता आज्ञा के वशीभूत उन्होंने अपनी माता का वध तो कर दिया किंतु अंदर ही अंदर वो बहुत क्रोधित थे। उनकी आज्ञाकारिता से खुश होकर पिता ने उन्हें वरदान मांगने को कहा तो उन्होंने वरदान में अपनी माता का जीवन मांगा जिससे उनकी माता जीवित तो हो गई किंतु वे मातृ हत्या के दोषी थे तो उनके पिता ने प्रायश्चित करने के लिए उन्हें उत्तरकाशी नामक स्थान पर शिव की तपस्या करने को कहा। भगवान परसुराम ने शिव की कठोर तपस्या की जिससे प्रसन्न होकर शिव ने उन्हें मातृ हत्या के दोष से मुक्त किया और परसुराम ने भगवान शिव से वहां लिंग स्वरुप में विराजमान होने का निवेदन किया जिसे शिव जी ने स्वीकार किया फिर परसुराम ने एक मंदिर का निर्माण किया जिसे काशी विश्वनाथ मंदिर के नाम से जाना गया और आज भी ये उत्तरकाशी के बीचोबीच विराजमान है।
इसकी खूबसूरती को बढ़ाता वरुणावत पर्वत
समुद्र तल से 1650 मीटर ऊंचाई पर स्थित वरुणावत पर्वत वर्ष 2003 में भूस्खलन के चलते सुर्खियों में आया था। उस समय पर्वत के शीर्ष से हुए भारी भूस्खलन के कारण कई भवन व होटल जमींदोज हो गए थे। बाद में भूस्खलन प्रभावित क्षेत्र को ठीक किया गया। अब वन विभाग ने इसी पर्वत के शीर्ष पर पर्यटन की संभावनाएं तलाशी हैं। पर्यटक यहां ट्रैकिंग, बर्ड वाचिंग के साथ जिप लाइन, बर्मा ब्रिज जैसी साहसिक गतिविधियों का आनंद उठा सकेंगे। साथ ही टेलीस्कोप के माध्यम से पर्यटक हिमालय की चोटियों का भी दीदार कर सकेंगे। डीएफओ दीपचंद आर्य का कहना है कि पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए दो करोड़ का प्रस्ताव शासन को भेजा गया है। प्रस्ताव को मंजूरी मिलते ही कार्य शुरू किया जाएगा।
प्रमुख दर्शनीय स्थान
भागीरथी नदी का उद्गम स्थल गौमुख (गंगोत्री) के अलावा रुद्रगंगा, आकाशगंगा, जाह्नवी और केदारगंगा जो भागीरथी में मिलती है। अस्सी नदी और भागीरथी के संगम पर ही उत्तरकाशी बसा हुआ यही। यमनोत्री कांठा नमक स्थान से यमुना नदी निकलती है जिसे कालिंदी नदी भी कहा जाता है।
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय पर स्थित भगवान विष्णु के अवतार परशुराम का इकलौता प्राचीन मंदिर है। पुराणों के अनुसार भगवान परशुराम ने यहीं तपस्या की थी। अभी हाल ही में इस मंदिर का जीर्णोद्धार कराया गया।
उत्तरकाशी जिला मुख्यालय से 75 किमी दूर गंगोत्री राजमार्ग पर स्थित है धराली गांव। यहीं पर सड़क से करीब 50 मीटर की दूरी पर कल्पकेदार मंदिर है। वर्ष 1945 में स्थानीय लोगों ने गंगा तट पर मंदिर का शिखर नजर आने पर जमीन से करीब 12 फीट नीचे खुदाई कर मंदिर के प्रवेश द्वार तक जाने का रास्ता बनाया।
यमुनोत्री और गंगोत्री धाम की यात्रा के दौरान तीर्थयात्रियों के लिए बड़कोट भी एक प्रमुख पड़ाव है। बरकोट में कई पवित्र तीर्थस्थल और आश्रम हैं जहाँ आगंतुक मानसिक आनंद प्राप्त कर सकते हैं और सफेद पानी राफ्टिंग जैसी गतिविधियों में शामिल हो सकते हैं।
उत्तरकाशी का सबसे प्रमुख पर्यटक स्थल हर्सिल है जिसे उत्तराखंड का स्वीजरलैंड भी कहते हैं। यह स्थान गंगोत्री को जाने वाले मार्ग पर भागीरथी नदी के किनारे स्थित है| यह समुद्र तल से 7,860 फीट (2,620 मीटर) की ऊंचाई पर स्थित उत्तरकाशी से हर्षिल 73 किमी दूर है।
कैसे पहुंचे
आप देहरादून और ऋषिकेश से यहाँ सड़कमार्ग से पहुँच सकते है। ऋषिकेश से यह लगभग 172 किलोमीटर तो देहरादून से 144 किलोमीटर की दूरी पर स्थित है । हवाई मार्ग से आप जोलीग्रांट एयरपोर्ट से टैक्सी द्वारा उत्तरकाशी पहुंच सकते है। निकटतम रेलवे स्टेशन ऋषिकेश और देहरादून।
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