स्वास्थ्य और अध्यात्म की दृष्टि से बहुत ही उपयोगी है हिमालयन नीम- टिमरू
विश्वभर को प्रकृति ने ऐसी ऐसी वनस्पतियां प्रदान की है जो मानव कल्याण के लिए बहुत ही उपयोगी है किंतु जाने अनजाने हम उन्हें नज़र अंदाज़ करते जा रहे है। ग्रामीण क्षेत्रों में रहने वाले लोग कुछ वर्षों तक इन वनस्पतियों को रोजमर्रा के कार्यों में किसी न किसी रूप में इस्तेमाल करते थे किंतु जैसे जैसे समाज में बदलाव आये और वह आधुनिकता के रंग में डूबने लगा तब ये वनस्पतियां भी उनसे दूर होती गई। एक ऐसी ही वनस्पति जिसे लोग हिमालयन नीम के नाम से जानते हैं और उत्तराखंड में इसे टिमरू या तिमूर के नाम से जाना जाता है। जब तक टूथपेस्ट लोगों के पहुँच से दूर थे तब उत्तराखंड में लोग टिमरू से ही दांतुन करते थे और वहां के लोग इसे शुभ भी मानते है।
पूरे उत्तराखंड में बहुतायत से पाया जाने वाला तिमूर रूटेसी (Rutaceae) परिवार से सम्बन्ध रखता है, इसका वैज्ञानिक नाम जेंथेजाइलम अरमेटम (Zanthoxylum Armatum) है। इसे गढ़वाल में टिमरू, कुमाऊं में तिमूर, संस्कृत में तुम्वरु, तेजोवटी, जापानी में किनोमे, नेपाली में टिमूर यूनानी में कबाब-ए-खंडा, हिंदी में तेजबल, और नेपाली धनिया आदि नामों से जाना जाता है। झाड़ीनुमा यह पौधा 8-10 मीटर ऊंचाई लिए होता है और इसका हर हिस्सा औषधीय गुणों से युक्त है, तना, लकड़ी, छाल, फूल, पत्ती से लेकर बीज तक दिव्य गुणों से भरपूर है।
टिमरू न केवल पूज्यनीय है अपितु औषधीय गुणों से भी भरपूर है। बद्रीनाथ मंदिर में तो वकायदा प्रसाद के रूप में दिया जाता है। इसका तना, छाल, पत्तियां और फल सभी के कुछ न कुछ फायदे है। उत्तराखंड में हर जगह इसकी चटनी बनाई जाती है जो बहुत ही स्वादिष्ट होती है और पेट के रोगों में लाभदायक होती है। इसकी पतियों का पाउडर बनाकर पेस्ट के रूप में इस्तेमाल होता है तो फल को मसाले के तौर पर इस्तेमाल किया जाता है। उत्तराखंड के घरों के किसी न किसी कोने में इसकी लकड़ी को रखना शुभ माना जाता है और वहां के लोगों के अनुसार इससे नकारात्मक शक्तियां पास नहीं फटकती। तिमूर की लकड़ी को बहुत ही शुभ माना जाता है यही कारण है की आध्यात्मिक कार्यों में भी इसका विशेष महत्त्व है। बच्चों के जनेऊ संस्कार व शादी व्याह में भिक्षा की रस्म के समय इस लकड़ी को लाठी के रूप में इस्तेमाल करना अति शुभ माना गया है।
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