कर्णप्रयाग: भारतीय ज्ञान परम्परा का मूल स्रोत वेदों से है। हम सभी यह जानते हैं कि ऋषियों ने वैदिक मन्त्रों का दर्शन किया- 'ऋषयो मन्त्र द्रष्टारः। आज भी हिमालय पर्वत का वह भूभाग 'वेदनी' दर्शनीय है, जहाँ ऋषियों ने वैदिक ऋचाओं का दर्शन किया। आध्यात्मिक विश्वविद्यालय पिथौरागढ़ के आयुर्वेद संकाय के सहायक आचार्य डा० भास्कर मिश्र ने शोधच्छात्र सुमित मिश्र के साथ इस वैदिक ऋचाओं के स्थल वेदनी का सर्वेक्षण कर स्पष्ट रूप से प्रमाणित किया कि आज भी यहाँ वैदिक ऋचाओं का गुञ्जायमान होता है। स्थिर ऊर्जा एवं सन्तुलन को साधकर प्रातः काल इसका श्रवण किया जा सकता है।
डा० भास्कर मिश्र ने यह महत्वपूर्ण अनुसंधान महामनीषी पण्डित देवदत्त शास्त्री जी की पुस्तक 'हिमालय मेरी बांहों में' के आधार पर वेदनी नामक स्थान जो चमोली जनपद में स्थित है, एवं वाणगांव के समीप है, वहाँ जाकर किया।
वाणगांव में प्रत्येक जन जन को वैदिक ध्वनियों के गुंजायमान का ज्ञान होता है। डा० भास्कर मिश्र ने इसका पूरा वर्णन अपनी पुस्तक 'देवभाषा के देवदत्त, एक वैदिक वैज्ञानिक' में बताया है। साथ ही इंटरनेशनल जर्नल आफ साइंस एण्ड ह्युमिनटीज में यह शोधपत्र प्रकाशित भी हुआ। आध्यात्मिक विश्वविद्यालय इस प्रकार के महत्वपूर्ण अनुसंधान के लिए सक्रिय है।
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