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उत्तराखंडी लोक भाषाओं के समानार्थी शब्दों एवं समरूप साहित्य के विनिर्माण विषय पर कार्यशाला का आयोजन

उत्तराखंडी लोक भाषाओं के समानार्थी शब्दों एवं समरूप साहित्य के विनिर्माण विषय पर कार्यशाला का आयोजन


हल्द्वानी : शुक्रवार 7 मार्च 2025 को हिंदी एवं भारतीय भाषा विभाग, कुमाऊं विश्वविद्यालय नैनीताल के मुख्य सभागार में उत्तराखंड राज्य विज्ञान एवं तकनीकी परिषद  (यूकास्ट) एवं कुमाऊं विश्वविद्यालय तथा उत्तराखंडी भाषा न्यास (उभान्) के संयुक्त तत्वावधान में उत्तराखंडी लोक भाषाओं के समानार्थी शब्दों एवं समरूप साहित्य के विनिर्माण विषय पर कार्यशाला का आयोजन किया गया। 

इस कार्यशाला के पहले सत्र की अध्यक्षता कुमाऊं मंडल के आयुक्त श्री दीपक रावत ने की। इस सत्र में उभान् के अध्यक्ष श्री नीलांबर पांडे, हिंदी एवं भारतीय भाषा के विभागाध्यक्ष प्रो निर्मला ढैला बोरा, उभान् के सचिव डॉ बिहारी लाल जलंधरी ने अपने विचार रखे। 

डॉ बिहारी जलंधरी ने उत्तराखंडी भाषा के विषय में हिंदी, पंजाबी, गुजराती एवं अन्य प्रादेशिक भाषाओं के इतिहास के संबंध में जानकारी दी। साथ ही उत्तराखंडी भाषा की पुरजोर पैरवी भी की। श्री नीलांबर पांडे ने उत्तराखंड की गढ़वाली कुमाउनी के शब्दों की उत्पत्ति के संबंध में विस्तृत जानकारियां प्रस्तुत की। उन्होंने उत्तराखंड के लिए एक भाषा पर काम करने व उसे कक्षा एक से कक्षा दसवीं तक एक विषय के रूप में स्थापित करने को कहा। उन्होंने भाषा को रोजगार के संबंध में अपने सारगर्भित वक्तव्य रखा। 

प्रो निर्मला ढैला बोरा ने इस मुहिम का सहृदय स्वागत करते हुए कहा कि उत्तराखंड में अभी तक इस पक्ष में कुछ खास काम नहीं हुआ। यदि उत्तराखंडी की बात पर कार्य हुआ तो गढ़वाली कुमाउनी का भेद समाप्त हो सकता है। अपने अध्यक्षीय भाषण में श्री दीपक रावत ने कहा कि मैं भी उत्तराखंड से ही हूं। इसलिए मैं उत्तराखंड के हर तरह के विकास के पक्ष में हूं। उस विकास में उत्तराखंडी भाषा भी सम्मिलित है। उन्होंने आगे कहा कि उभान् के माध्यम से डा जलंधरी ने जो भी प्रस्ताव दिये हैं उनका यह प्रयास निस्संदेह सराहनीय है। और अपनी भाषा के लिए उचित प्लेटफार्म मिलने पर मैं स्वयं इस बात को सरकार के समक्ष रखूंगा। 

आज के दूसरे सत्र की अध्यक्षता डॉ हरि सुमन बिष्ट ने की। जिसमें वक्ता के रूप में प्रोफेसर चंद्रकला रावत, डॉ पृथ्वी सिंह केदारखंडी, डॉ भवानी दत्त कांडपाल एवं डॉ हयात सिंह रावत ने भी अपनी बातें पुख्तातौर पर रखीं। द्वितीय सत्र के सभी विद्वानों का वक्तव्य बहुत ही सारगर्भित रहा। जिसमें विशेषकर चंद्रकला रावत के अनुसार गढ़वाली कुमाउनी के सत्तर से अस्सी प्रतिशत शब्द समान हैं, की बात सभी के द्वारा  उनकी इस बात का पुरजोर समर्थन किया गया। केदारखंडी ने डॉ बिहारी लाल जलंधरी द्वारा संचालित मिशन के तहत उत्तराखंडी भाषा को उत्तराखंड की भाषाई एकता एवं क्षेत्रीय एकता की बात करते हुए कहा कि हमें इस विषय पर उत्तराखंड के हित में पूर्ण समर्पण से आगे बढ़ते हुए काम करना चाहिए, जिससे उत्तराखंड की भाषा उत्तराखंड में रोजगार की भाषा बन सके। 

कार्यशाला में अनेकों विद्वयुतजनों के साथ साथ सौकड़ों भाषा प्रेमी मौजूद रहे। कुछेक शोधकर्ताओं ने इस अवसर पर अपने शोध पत्र भी पढ़े।

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