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दिल्ली एनसीआर में उत्तराखंडियों ने धूमधाम से मनाई इगास बग्वाळ

 दिल्ली एनसीआर में उत्तराखंडियों ने धूमधाम से मनाई इगास बग्वाळ



नई दिल्ली : उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत में विशेष महत्व रखने वाली इगास बग्वाळ अब विश्व पटल पर मनाई जाने लगी है। उत्तराखंड में इस बग्वाळ को मनाने की कई किंवदंतियां है लेकिन उनमे से एक 400 साल पहले भड़ माधो सिंह भंडारी के तिब्बत विजय कर उत्तराखंड पहुँचने की सबसे प्रचलित है।  कहा जाता है माधो सिंह भंडारी अपनी बची हुई सेना के साथ जिस दिन श्रीनगर गढ़वाल पहुंचे तो वो दिन दिवाली के बाद आने वाली एकादशी का दिन था। इस ख़ुशी में उस समय के राजा महिपत शाह ने अपनी प्रजा से घर में प्रकाश करने और उत्सव मानने को कहा। तब लोगों ने चीड़ की लकड़ी से मशालें (भैलो) बना भड़ माधो सिंह पर बने लोक गीतों को गा उत्सव मनाया था।  तभी से उत्तराखंड में इसे इगास बग्वाळ के रूप में मनाया जाने लगा। 

कुछ वर्षों से उत्तराखंड के अलावा देश के महानगरों व विदेशों में रहने वाले प्रवासी उत्तराखंडी बंधुओं ने भी अपने-अपने शहरों में इसे मनाना शुरू किया जिससे उत्तराखंड की सांस्कृतिक विरासत को एक नई पहचान मिली । 

प्रवासियों ने दिल्ली में सांसद अनिल बलूनी जी के घर, द्वारका और लाजपत नगर साहिबाबाद में इगास बग्वाल को बड़ी धूमधाम से मनाया। उत्तराखंड के वाद्ययंत्रों की ताल पर लोगों ने चीड़ की लकड़ी से बने मशाल से विभिन्न अंदाज़ों में “भैलो रे भैलो,” “काखड़ी को रैलू,” और “उज्यालू आलो अंधेरो भगलू” और भड़ माधो सिंह पर बने पारंपरिक लोकगीतों के संग भैलो खेल अपनी ख़ुशी जाहिर की। 

सांसद अनिल बलूनी जी के घर पर भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी व बाबा रामदेव भी शामिल हुए। प्रधानमंत्री ने कहा कि ये समय अपनी सांस्कृतिक विरासत को बचाने का है, इसलिए उत्तराखंडियों को अधिक से अधिक अपने पारंपरिक त्यौहारों को मनाना चाहिए जिससे कि उत्तराखंड की अभूतपूर्व संस्कृति से दुनिया का परिचय हो सके। 

सांसद अनिल बलूनी ने कहा कि हमारी आधुनिक पीढ़ी इगास बग्वाल को बिलकुल ही भूल गए थे। हमने प्रधानमंत्री से अपने लुप्त हो रहे त्यौहारों के विषय में बात कि तो मैं धन्यवाद् करना चाहता हूँ प्रधानमंत्री जी का कि उन्होंने हमारे लोक पर्वों के संरक्षण के लिए पहल की। उन्ही की प्रेरणा से हमें 5-6 वर्ष पूर्व हमने इगास बग्वाळ मनाना शुरू किया और दो वर्ष पहले उत्तराखंड सरकार ने भी इगास पर्व पर अवकाश की घोषणा भी की। आज विश्वभर में जहां जहां भी उत्तराखंडी रहते हैं वे इसे मना रहे हैं। 

वहीं लाजपत नगर साहिबाबाद में उत्तराखंडी पारंपरिक वाद्य यंत्र ढोल, दमाऊ, मसकबीन और हुड़के की थाप पर झोड़ा नृत्य और पांडव नृत्य कर भैलो खेला गया यहां बग्वाळ का आकर्षण रहा चूल्हे पर बना उत्तराखंडी पारंपरिक भोज। दिल्ली एनसीआर में कैटरिंग में पहाड़ का ब्रांड बन चुके पहाड़ी घरात द्वारा अड़से, भड्डू की दाल, आलू मूला की सब्जी पहाड़ी रायता, मंडवे की रोटी विशेष रूप से गांव के अंदाज़ में मालु के पत्तों के पत्तलों में लोगों को जमीन में बैठाकर परोसा गया। जिसकी वहां मौजूद उत्तराखंडी ही नहीं बल्कि अन्य समाज के लोगों ने भी खूब सराहना की। 

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