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उत्तराखंड में रोजगार के लिए वरदान साबित हो रही है पहाड़ी गाय (बद्री गाय)



उत्तराखंड में रोजगार के लिए वरदान साबित हो रही है पहाड़ी गाय(बद्री गाय)

उत्तराखंड के गांवों के लोग पशुओं से बहुत प्रेम करते है यही कारण है कि वहां रह रहे हर परिवार के पास एक गाय तो जरुर मिलेगी जिसकी वो दिल से सेवा करते है और उनकी सेवा की एवज में गाय भी उन्हें अपना सर्वस्थ प्रदान करती है।  ये पहाड़ी गांयें जिन्हें बद्री गाय भी कहा जाता है जो छोटी कद काठी की होती है जिस कारण ये पहाड़ों पर आसानी से चल फिर सकती है।  

पहाड़ के लोगों के पास गाय के रूप में इतना बेशकीमती हीरा है जिसे छोड़कर वो रोजगार के लिए शहरों में भटक रहे हैं। ये दुधारू गायें चारे के रूप में जंगल में घास,बुग्याल चरने के साथ साथ औषधीय जड़ी बूटियां भी खाती है जिससे इनका दूध बहुत ही पौष्टिक होता है।  इसी पौष्टिक गुणों के कारण देश ही नहीं विदेशों में भी इनके मूत्र, दूध और घी को काफी पसंद किया जा रहा है, यही कारण है कि भारत के अन्य प्रदेशों के मुकाबले इन गायों की अधिक मान्यता है। उत्तराखंड सरकार के लिए तो यह वरदान है जिसके महत्व को समझते हुए उत्तराखंड सरकार ने इसके सरक्षण के लिए कार्य करना शुरू कर दिया है यही नहीं केंद्र सरकार भी इन गायों की ब्रांडिंग की योजना तैयार कर रही है। उत्तराखंड के चम्पावत जिले में तो 2012 से ही इनके विकास पर कार्य आरम्भ हो चुका है और अब बागेश्वर में ग्रोथ सेंटर बनाया गया है। 


                                फोटो आभार सोनी पुरोहित

वैज्ञानिक तथ्य 

पहाड़ी गाय बद्री के दूध में 90% A-2 जीनोटाइप बिता केसीन पाया जाता है जो डाइबिटीज़ और ह्रदय रोगों के लिए बहुत ही उपयोगी है। IIT भारतीय प्रौद्योगिक संस्थान रूडकी के वैज्ञानिकों ने दूध पर किये शोध में पाया कि अन्य गायों के मुकाबले  सबसे अधिक गुणकारी और निरोग दूध पहाड़ी गाय बद्री का है। उनके मुताबिक A-2 बीटा में प्रोटीन अधिक मात्रा में पाया जाता है जो आसानी से पचने वाला शक्तिदायक है और हमारी सेहत के लिए बहुत ही फायदेमंद होता है। हिमाचल प्रदेश कृषि विश्वविद्यालय में पशुचिकित्सा सूक्ष्मजैविकी विभाग के शोधार्थियों ने इन गायों पर किये जा रहे शोधों के 97 प्रतिशत मामलों में पाया कि इनके दूध में अधिक प्रोटीन होने से ये  बच्चों के लिए काफी कारगर है और उन्हें एलर्जी से भी बचाता है। 

बिलोना विधि से तैयार घी 

आयुर्वेद में गाय के घी को उत्तम माना गया है  उस पर यदि पहाड़ी गाय का घी हो तो वो अमृत सामान है। भैंस के दूध से निर्मित घी के मुकाबले गाय का घी काम वषायुक्त होता है जो शरीर में आसानी से पच जाता है।  बद्री घी पूरी तरह से प्राकृतिक रूप से तैयार होता है।  इस गाय के दूध को पहले धीमी आंच पर खूब उबाला जाता है फिर ठंडा होने पर लकड़ी के पात्र में दही ज़माने के लिए रख दिया जाता है।  जब इसकी दही जम जाती है इस दही को मथनी (बिलोना) में मथा जाता है उससे निकली मलाई को धीमी आंच में गलाकर जो घी निकलता है वो एकदम दानेदार व हल्का पीला रंग लिए होता है। इस विधि से तैयार घी के पौषक तत्व नष्ट नहीं होते। पौष्टिकता से परिपूर्ण होने के कारण ही इस घी को विदेशों में खूब पसंद किया जा रहा है। 

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