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शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करती रचना- एक बालक की व्यथा


शिक्षा व्यवस्था पर सवाल खड़े करती रचना- एक बालक की व्यथा 

शिक्षा के ऊपर हर सरकारें बड़े बड़े दावे करती है किंतु आज भी भारत में विश्वस्तरीय शिक्षा नहीं मिल पा रही है। हाँ इतना जरूर हुआ है कि शिक्षा के नाम पर जगह जगह दुकानें खुल गई है जो केवल अधकचरा ज्ञान ही बच्चों को परोश रहे हैं। ये सब देखकर एक बालक का कोमल ह्रदय क्या कहता है इस कविता के माध्यम से आप समझ सकते हैं। 

रचनाकार - द्वारिका चमोली (डीपी)

एक बालक की व्यथा

आज़ाद देश में रहकर

गुलामी का सा अहसास होता है

कभी कभी सोचता हूँ तो

पाता हूँ अपने चारों और अँधेरा

छोटी छोटी बातों के लिए दुनिया लड़ रही है

अपने अपनों से ही खेल खेल रहे हैं

कहने को तो परिवार है पर

सबका अपना अपना संसार है

मुझे तो बस उजाले का इंतज़ार है...मुझे तो बस

पढ़ाई के नाम पर हमारे कन्धों पर बोझ लदा है

शिक्षक व् विद्यार्थी का रिश्ता भी कुछ जुदा जुदा है

ट्यूशन की जगह जगह दूकान खुल गई

शिक्षा के नाम पर देखो लूट मच गई

ज्ञान की गंगा जैसे थम सी गई

मेरी जिज्ञासा और बढ़ गई

बिन पढ़े ही जब पास होना है

फिर क्यों ये कम स्कूलों का  रोना है

ऐसे सिस्टम को नमन बारंबार है

मुझे तो बस उजाले का इंतज़ार है....मुझे तो बस

उज्जवल भविष्य के नाम पर हमें ठगा जाता है

हर कोई अपने अपने शिक्षा मंदिरों के गुण गाता है

पर उचित चढ़ावा चढाने पर भी

हमें अधूरा ज्ञान ही मिल पाता है

मेरे कोमल ह्रदय पर नित्य आघात लगते है

शिक्षा का चीर हरण होते देख

उर में शोले सुलगते है

यही वजह है इस बेरुखी व् बे अदब दुनिया में

आज बेरोजगारों की भरमार है

मुझे तो बस उजाले का इंतज़ार है....मुझे तो बस


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